Black Quota system: ब्लैक कोटा सिस्टम बना साउथ अफ्रीका की वो बड़ी मजबूरी, जिसके चलते दूसरे सेमीफाइलन में करना पड़ा करारी हार का सामना

 


कल यानी 16 नवंबर को भारत में जारी वनडे वर्ल्ड कप का दूसरा सेमीफाइनल साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के बीच कोलकाता में खेला गया। ऐतिहासिक ईडन गार्डन स्टेडियम में खेले गए इस अहम मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए साउथ अफ्रीका को 3 विकेट से करारी शिकस्त देकर फाइनल में जगह बना ली है। अब मेजबान भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 19 नवंबर को अहमदाबाद में फाइनल मैच खेला जाएगा।

इस बीच दूसरे सेमीफाइल के दौरान पूरी तरह फिट नहीं होने और पीछले मैचों में कुछ खास प्रदर्शन नहीं होने के बावजूद साउथ अफ्रीकी कप्तान टेम्बा बावूमा के मैच खेले।  इस बीच सोशल मीडिया पर साउथ अफ्रीका टीम में ब्लैक कोटा सिस्टम को टीम की हार का मुख्य कारण पर बताया जा रहा है। तो आईए इस आर्टिकल में हम आपको विस्तार से बताते साउथ अफ्रीका टीम में रंग कोटा इस प्रकार काम करता है।

साउथ अफ्रीकी टीम में क्या है ब्लैक कोटा सिस्टम जिसके चलते टीम में खेले टेम्बा बावूमा

दरअसल शुरुआत से ही रंगभेद का शिकार रहा साउथ अफ्रीका में सामान्य लोगों के साथ खिलाड़ियों तक नस्लीय भेदभाव होता था। उसी को खत्म करने के लिए साउथ अफ्रीका की क्रिकेट टीम में आरक्षण लागु किया गया। जिसके तहत नेशनल टीम में गोरे खिलाड़ियों की संख्या सात से अधिक नहीं होगी।

वहीं चार अश्वेत खिलाड़ी टीम का हिस्सा होंगे। इन चार अश्वेत खिलाड़ियों में से भी दो जिनमें से दो अफ्रीका के काले मूल निवासी होने चाहिए।बहुत समय से साउथ अफ्रीका के घरेलू क्रिकेट में जारी यह आरक्षण 2016 में साउथ अफ्रीका की नेशनल टीम में भी लागु किया गया। इसके चलते ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए दूसरे सेमीफाइनल में केशव महाराज, तबरेज शम्सी सहित कप्तान टेम्बा बावूमा और कगिसो रबाडा को टीम में शामिल किया गया। गौरतलब है कि साउथ अफ्रीका कप्तान टेम्बा बावूमा का प्रदर्शन इस वर्ल्ड कप में कुछ खास नहीं रहा। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए अहम सेमीफाइनल मैच में बावूमा बिना खाता खोले स्टार्क का शिकार होकर पवेलियन लौट गए थे। बता दें कि अगर ब्लैक कोटा सिस्टम लागु नहीं होता तो कप्तान टेम्बा की जगह रीजा हेनरिक्स टीम का हिस्सा होते।

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